गणेश पूजा
गणेश पूजा
गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है।
कैसे हुई गणेश जी की उत्पत्ति?
शिवपुराण की कथानुसार शिव के अनेक गण थे जो उनकी आज्ञा का पालन करते थे। परंतु पार्वती जी का कोई गण नहीं था। इसी पीड़ा से क्षुब्ध पार्वती ने अपने शरीर पर लगाए उबटन की मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए।
वर्तमान में इस कारण से मनाई जा रही है गणेश चतुर्थी
ऐतिहासिक धार्मिक मान्यतानुसार गणेश चतुर्थी को महाराष्ट्र में मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।
भारत में 1893 के आसपास भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सैनानी बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को एक सामाजिक और धार्मिक कार्य के रूप में व्यवस्थित करना शुरू किया। उन्होंने मंडप में गणेश की मूर्ति को स्थापित करने और दसवें दिन विसर्जन की परंपरा की शुरुआत की। इसे त्योहार रूप में मनाने का उद्देश्य अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करना था जो धीरे-धीरे पूरे राष्ट्र में त्यौहार की तरह मनाया जाने लगा।
वर्तमान में गणेश की जिस तरह से पूजा अर्चना की जा रही है यह भक्त को सात जन्मों में भी लाभ व मोक्ष नहीं दे सकती। साधक सदा जन्म मरण के चक्कर काटता रहता है। किसी भी भगवान को ईष्ट मानकर भक्ति करने से साधक मृत्यु उपरांत कुछ समय के लिए भले ही इन भगवानों के लोक में गण या स्थान प्राप्त कर सकता है परंतु उसे भोगने के बाद उसे फिर से स्वर्ग नरक और पृथ्वी के चक्कर लगाने से कदापि मुक्ति नहीं मिलती।
साधक या भक्त जिस भी भगवान को अपना इष्टदेव मानकर मंत्र जाप करते हैं वे उसी के लोक में चले जाते हैं। जैसे विष्णु का साधक विष्णु लोक में, शिव का साधक शिव लोक में, ब्रह्मा का साधक ब्रह्मा लोक में, काल ब्रह्म का साधक ब्रह्मलोक में चला जाता है। गीता अ. 9 के श्लोक 25-26 और अ.8 के श्लोक 8-9-10 में लिखा है जो जिसकी भक्ति करता है उसी के लोक में चला जाता है। गीता अ. 9 के श्लोक 20 और 21 में लिखा है साधक जन दिव्य स्वर्ग को भोगकर फिर मुत्युलोक में आते हैं। यानि मुक्ति नहीं मिलती।
संत ब्रह्मा, विष्णु, शिव और ब्रह्म की पूजा नहींं करते बल्कि इनका आदर करते हैं। वह कबीर साहेब पूर्ण ब्रह्म सतपुरूष की पूजा करते हैं और करवाते हैं।
वर्तमान में गणेश जी की जिस तरह से भक्ति समाज में की जा रही है इससे समाज को और करने वाले साधक को राई के दाने जितना लाभ भी नहीं हो सकता। मनचाही मूर्ति बाज़ार से लाकर दस दिन तक पूजा और भोग लगाकर दसवें दिन जलप्रवाह करने से पानी में रहने वाले जीव मूर्ति में इस्तेमाल हुए ज़हरीले रंगों के दुषप्रभाव से मर जाते हैं। प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी के विसर्जन के दौरान लाखों लोग दुर्घटना के शिकार होते हैं। ढोल नगाड़े बजाकर गणेश जी की मूर्ति को घर लाया और बहाया जाता है। ऐसी पूजा विधि करने का आदेश तो किसी भी प्रकार के पुराण में या ग्रंथ में लिखित नहीं है।
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